भैरव के विभिन्न रूप और उनकी उपासना: अष्ट भैरव से बटुक भैरव तक

भैरव का अर्थ है भय को हरने वाला इनको क्षेत्रपाल भी कहा जाता है इनकी उपासना का सबसे अच्छा वक्त दिन का आखरी पहर होता है वोभी एकदम तरीके से साफ होकर मन्न साफ करके अर्चना की जाती है रविवार और मंगलवार का दिन इनका होता है। साथ ही साथ ये भी एक जागृत देवता हैं जैसे मां काली और राम भक्त हनुमान जी हैं!!






बटुक भैरव भगवान भैरव का बाल स्वरूप है घरों में इनकी ही पूजा की जाती है क्योंकि ये प्रभु का सौम्य रूप है।

काल भैरव भगवान भैरव का युवा और एग्रेसिव रूप है । इनकी पूजा अक्सर शमशान या घर से दूर बाहर एकांत में करने की सलाह है इन्हें शमशान भैरव या मसान भैरव भी बोला जाता है।

 तंत्र शास्त्र में हिन्दू भगवान भैरव जी के आठ रूप हैं, जिन्हें अष्ट भैरव के नाम से जाना जाता है।

शिवमहापुराण के अनुसार भगवान शिव के क्रोध से भैरवनाथ की उत्पत्ति हुई थी और इन्हें शिव गण के रूप में स्थान प्राप्त है।

ये अष्ट भैरव आठ दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य) की रक्षा और नियंत्रण करते हैं।आठों भैरवों के नीचे आठ-आठ भैरव होते हैं। यानी कुल 64 भैरव माने गए हैं।

सभी भैरवों पर महा काल भैरव द्वारा शासित और नियंत्रित किया जाता है, जिन्हें ब्रह्मांड के समय का सर्वोच्च शासक और भैरव का प्रमुख रूप माना जाता है।

                                                           💎   प्रमुख अष्ट भैरव 

📌असितंग भैरव-

इनका रूप सफेद रंग का है और इनकी चार भुजाएँ हैं।इनके चार हाथों में माला, कमंडल, तलवार और खोपड़ी का प्याला है। इनकी शक्ति ब्राह्मणी है। इनका वाहन स्वान है। ये पूर्व दिशा के रक्षक और नियंत्रक हैं।

📌रुरु भैरव-

इनका रूप हल्के नीले रंग का है और ये अपनी चार भुजाओं में हिरण, कुल्हाड़ी, तलवार और कटोरी लिए हुए हैं। इनकी शक्ति माहेश्वरी हैं। इनका वाहन बैल है तथा ये दक्षिण - पूर्व (आग्नेय) दिशा के रक्षक और नियंत्रक हैं।

📌चंदा भैरव-

इनका रूप गौर वर्ण है। इनकी चार भुजाएँ हैं, जिनमें ये धनुष, बाण, तलवार और कटोरी धारण किए हुए हैं। ये मयूर की सवारी करते हैं और इनकी शक्ति कौमारी हैं। ये दक्षिण दिशा के रक्षक और नियंत्रक हैं।

📌क्रोध भैरव-

इनका रूप गहरे नीले रंग का है। इनकी चार भुजाएँ हैं, जिनमें ये शंख, चक्र, गदा और कटोरा धारण करते हैं। इनकी सवारी ईगल है। वैष्णवी इनकी शक्ति हैं। ये दक्षिण - पश्चिम (नैऋत्य) दिशा के रक्षक और नियंत्रक हैं।

📌उन्मत्त भैरव-

ये सुनहरे रंग के वर्ण वाले हैं और अपनी चार भुजाओं में वह तलवार, खोपड़ी, प्याला और ढाल धारण करते हैं। इनका वाहन घोड़ा है। इनकी शक्ति वाराही हैं। ये पश्चिम दिशा के रक्षक और नियंत्रक हैं।

📌कपाल भैरव-

इनका वर्ण चमकदार-पीला है। ये अपनी चार भुजाओं में वज्र, फंदा, तलवार और कटोरी धारण किए हुए हैं। इनका वाहन हाथी है। इनकी शक्ति इंद्राणी हैं। ये उत्तर - पश्चिम ( वायव्य) दिशा के रक्षक और नियंत्रक हैं।

📌भीषण भैरव-

इनका रूप रक्त-लाल रंग का है और इनकी चार भुजाएँ हैं, जिनमें तलवार, खोपड़ी का प्याला, त्रिशूल और मूसल धारण किए हुए हैं। ये प्रेत की सवारी करते हैं। इनकी शक्ति चामुण्डा हैं। ये उत्तर दिशा के रक्षक और नियंत्रक हैं।

📌समारा भैरव-

इनका वर्ण पीले-नारंगी रंग का है। इनकी दस भुजाएँ हैं जिनमें ये त्रिशूल, ड्रम, शंख, गदा, चक्र, तलवार, कटोरी, खोपड़ी, फंदा और एक बकरा धारण करते हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी शक्ति चंडी हैं। ये उत्तर - पूर्व ( ईशान) दिशा के रक्षक और नियंत्रक हैं।

तंत्र साधक ही अष्ट भैरव की पूजा और साधना करते हैं। गृहस्थ व्यक्ति अष्ट भैरव की पूजा नहीं करते, ना ही इन्हें घर में स्थापित करते हैं। ये प्रमुख रूप से तंत्र के देवता माने गए हैं।

गृहस्थ व्यक्ति भैरव नाथ जी के सौम्य रूप 'बटुक भैरव' और 'बाल भैरव' की पूजा कर सकते हैं। बाल भैरव छह-सात वर्ष के बालक के रूप में हैं और बटुक भैरव 15-16 साल के किशोर के रूप में है।

||ॐ||

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