महाकुंभ 2025: 'एकता का महायज्ञ' और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण

 महाकुंभ 2025: 2 लाख करोड़ रुपये का राजस्व और आर्थिक संभावनाएं 

महाकुंभ मेला, जो 13 जनवरी 2025 को प्रयागराज में शुरू हुआ, न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक विशाल आर्थिक आयोजन भी है। इस मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु और पर्यटक देश-विदेश से आते हैं, जिससे स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भारी बढ़ावा मिलता है। इस बार, महाकुंभ 2025 से अनुमानित 2 लाख करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित होने की संभावना है।



महाकुंभ से होने वाली कमाई के प्रमुख स्रोत

महाकुंभ मेला न केवल धार्मिक क्रियाओं का स्थल होता है, बल्कि यह विभिन्न उद्योगों और व्यापारों के लिए भी एक महत्वपूर्ण आर्थिक अवसर है। दूधवाले से लेकर हेलीकॉप्टर सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों तक, यह आयोजन हर वर्ग के लिए राजस्व के अवसर पैदा करता है।

उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी के अनुसार, महाकुंभ 2025 से 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व होने की उम्मीद है। अखिल भारतीय व्यापारी संगठन (CAIT) के यूपी चैप्टर ने अनुमान लगाया है कि महाकुंभ के दौरान भक्तों की आवश्यकता से जुड़ी बुनियादी सामग्री से ही लगभग 17,310 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा।

इसके अलावा, अन्य व्यापारों में भी महत्वपूर्ण योगदान रहेगा:

  • किराने का सामान से ₹4000 करोड़
  • खाद्य तेल से ₹1000 करोड़
  • सब्जियां से ₹2000 करोड़
  • बिस्तर, गद्दे और चादरें से ₹500 करोड़
  • दूध और डेयरी उत्पाद से ₹4000 करोड़
  • आतिथ्य से ₹2500 करोड़
  • यात्रा से ₹300 करोड़
  • नाविकों से ₹50 करोड़ का राजस्व उत्पन्न होने की संभावना है।

महाकुंभ 2025 में आर्थिक गतिविधियां

CAIT के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि महाकुंभ मेला एक विशाल आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र होगा। उन्होंने यह भी अनुमान लगाया कि प्रत्येक तीर्थयात्री औसतन 5,000 रुपये खर्च करेंगे, जिससे कुल खर्च 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने की संभावना है। इस खर्च में होटल, गेस्टहाउस, अस्थायी आवास, भोजन, धार्मिक वस्त्र, स्वास्थ्य सेवाएं और अन्य सेवाएं शामिल हैं।



महाकुंभ 2013 और 2019 का आर्थिक प्रभाव

2013 में हुए महाकुंभ से ₹12,000 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था। वहीं, 2019 के कुंभ से ₹1.2 लाख करोड़ का राजस्व अर्जित हुआ। इन दोनों आयोजनों ने स्थानीय रोजगार के अवसरों को भी बढ़ावा दिया था। 2019 के कुंभ से 6 लाख से अधिक नौकरियां उत्पन्न हुई थीं, और अब 2025 के महाकुंभ से भी ऐसे ही आर्थिक लाभ की उम्मीद है।

व्यापार और रोजगार का उछाल

महाकुंभ में पूजा सामग्री की बिक्री से लगभग ₹2,000 करोड़ का राजस्व होने की संभावना है। इसके अलावा, फूलों का व्यापार ₹800 करोड़ तक पहुंच सकता है। इस आयोजन से स्थानीय व्यवसायों को "स्वर्णिम अवसर" मिलता है, क्योंकि कई व्यवसाय महाकुंभ के दौरान एक साल के व्यापार से अधिक राजस्व कमा सकते हैं। सीआईआई के उत्तर प्रदेश चैप्टर के अध्यक्ष आलोक शुक्ला ने इसे एक बड़ा "स्वर्णिम अवसर" बताया।

आतिथ्य उद्योग का तेजी से बढ़ना

महाकुंभ में आतिथ्य उद्योग भी तेजी से बढ़ता है। प्रयागराज और उसके आसपास के क्षेत्रों में 150 से अधिक होटल श्रद्धालुओं की सेवा कर रहे हैं। इन होटलों में स्विस कॉटेज, डारमेट्री और लक्जरी टेंट जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। टेंट की कीमत ₹1,500 से लेकर ₹35,000 प्रति रात तक हो सकती है। संगम निवास में 44 सुपर-लक्जरी टेंट पहले ही बुक हो चुके हैं।

हेलीकॉप्टर सेवा से करोड़ों की कमाई

महाकुंभ में हेलीकॉप्टर सेवा भी प्रमुख आकर्षण है। इस सेवा से औसतन 3.5 करोड़ रुपये प्रति दिन की कमाई होने की उम्मीद है, जो 45 दिनों की अवधि में 157 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है। यह सेवा तीर्थयात्रियों को संगम के दर्शन के लिए हेलीकॉप्टर के माध्यम से लाती है, और प्रत्येक तीर्थयात्री को ₹5,000 प्रति यात्रा का शुल्क लिया जाता 

बजट आवंटन और राजस्व

उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ 2025 के आयोजन के लिए अनुमानित ₹7,500 करोड़ खर्च करने का फैसला किया है। 2024-25 के राज्य बजट में 2,500 करोड़ रुपये महाकुंभ के लिए आवंटित किए गए हैं, जबकि पिछले वर्ष यह राशि 2,500 करोड़ थी। केंद्र सरकार ने महाकुंभ के लिए ₹2,100 करोड़ का विशेष अनुदान मंजूर किया है।

छोटे विक्रेताओं और स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ

महाकुंभ में छोटे विक्रेताओं जैसे टेम्पो संचालक, रिक्शा चालक, फूल बेचने वाले, नाविक और होटल संचालक को भी महत्वपूर्ण लाभ होता है। यह आयोजन स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भारी आर्थिक उछाल लाता है। CAIT के अनुसार, महाकुंभ से जुड़ी व्यापारिक गतिविधियों से 40,000 करोड़ रुपये का व्यापार आवास और पर्यटन क्षेत्र से उत्पन्न होगा।

निष्कर्ष

महाकुंभ 2025 एक विशाल धार्मिक और आर्थिक आयोजन है, जो न केवल भारत के धार्मिक जीवन को समृद्ध करता है, बल्कि यह स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान करता है। इस आयोजन से होने वाली 2 लाख करोड़ रुपये की कमाई न केवल व्यापारियों और सरकार के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह लाखों लोगों के लिए रोजगार और आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम भी बनती है।

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